प्रस्तुत लेख में आप चाणक्य जिनको हम विष्णुगुप्त तथा कौटिल्य आदि नामों से भी जानते हैं। उनके जीवन से संबंधित वास्ते कहानियों को पढ़ने का अवसर मिलेगा।
यह कहानियां उनके जीवन में घटित हुई घटनाओं के आधार पर है जो वास्तविक है।
कहानियों को पढ़कर आप उनके जीवन की घटनाओं से भलीभांति परिचित हो सकेंगे।
आचार्य चाणक्य की कहानियां
Acharya chanakya story in hindi
आचार्य चाणक्य तक्षशिला के महान आचार्यों में से एक थे,जिन्होंने तक्षशिला में प्रधानाचार्य का पद भी संभाला था।
यह कई क्षेत्रों तथा विषय में प्रांगण है। इनकी तीव्र बुद्धि का परिचय हम अखंड भारत के निर्माण के रूप में भी देख सकते हैं।
इन्होंने मगध साम्राज्य में प्रधानमंत्री का पद संभालते हुए -ऑडिट, सैन्य,सामंत आदि जैसे नए प्रयोग किए।
आज भी आचार्य चाणक्य द्वारा अपनाए गए पद्धति पर देश कार्य करता है।
निम्नलिखित कहानियां उनके जीवन से संबंधित है जिन्हें पढ़कर आप आचार्य के विषय में जानकारी हासिल करेंगे –
1. राजा का घमंड चूर
( Chanakya stories in Hindi on arrogance )
एक समय की बात है , आचार्य चाणक्य अखंड भारत की रक्षा के लिए एक राजा के दरबार में पहुंचे। राजा बेहद ही अहंकारी और स्वार्थी स्वभाव का था , किंतु आचार्य चाणक्य जैसा कोई विद्वान उसके दरबार में आया हो यह बात वह अपने लिए गर्व की समझ रहा था। वह आचार्य चाणक्य के आगमन से प्रसन्न था , उसने आचार्य चाणक्य को उपहार स्वरूप एक रत्न जड़ित बेशकीमती तलवार आचार्य चाणक्य को देने के लिए प्रस्तुत किया। आचार्य चाणक्य ज्ञान और भविष्य दृष्टा के धनी थे , उन्होंने प्रसन्न मुख से राजा के स्वागत सत्कार का साधुवाद अथवा धन्यवाद किया।
आचार्य चाणक्य ने कहा अगर तुम मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मुझे एक सुई और अखंड भारत में मेरा योगदान दो। यह तलवार मेरे किसी काम का नहीं , सुई फटे हुए कपड़े को सिलना जानता है , तलवार का कार्य खंड – खंड करना है , इसलिए यह तलवार मेरे किसी काम का नहीं। राजा को आचार्य चाणक्य की बात सुनकर आश्चर्य हुआ , वह काफी देर सोच – विचार में पड़ गया। किंतु आचार्य चाणक्य का वचन राजा को कुछ देर बाद समझ आया।
राजा तत्काल चाणक्य के चरणो में नतमस्तक हुआ और अखंड भारत में अपना योगदान अग्रणी भूमिका में देने का वचन आचार्य चाणक्य को दिया।
2. चाणक्य का संकल्प
यह उन दिनों की बात है जब यवन सेना विश्व विजय के उद्देश्य से भारत की ओर निरंतर बढ़ती जा रही थी। आचार्य चाणक्य इस परिस्थिति को भलीभांति देख रहे थे। वह भारत को लूटते हुए नहीं देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने उस समय के शक्तिशाली और विस्तृत साम्राज्य के से राजा धनानंद से मदद मांगने के लिए दरबार में उपस्थित हुए।
कहो!ब्राह्मण तुम कौन हो और कहां से आए हो ?
महाराज -मैं तक्षशिला का आचार्य चाणक्य हूं!
कहो किस लिए आए हो ?
यवन की सेना निरंतर आर्यव्रत की ओर बढ़ती आ रही है जिसका उद्देश्य ठीक नहीं है।
तो हम क्या कर सकते हैं ?
महाराज आपके पास विशाल सेना है,आप उसका सामना कर सकते हैं। अगर उसे नहीं रोका गया तो आप का साम्राज्य भी नहीं बचेगा। इस प्रकार की वार्तालाप दोनों के बीच हुई जिसमें धनानंद अपने लोभ और अहंकार से बाहर नहीं निकला और आचार्य चाणक्य की भरे दरबार में बेज्जती करते हुए लात मारकर निष्कासित करने का आदेश दिया। इस प्रहार से आचार्य जमीन पर गिरे और उनके शिखा खुल गई।
उस खुली शिखा को दिखाते हुए उन्होंने भरी दरबार में संकल्प लिया-
‘यह शिखा तब तक नहीं बांधूंगा जब तक मगध साम्राज्य की गद्दी पर कोई योग्य राजा ना बैठा दूँ। ‘
ऐसा ही हुआ उन्होंने कठिन परिश्रम और योग्यता से बेहद छोटे से आदिवासी लड़के चंदू को योग्य बना कर चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में स्थापित किया।
3. खिचड़ी से मिली शिक्षा
( Chanakya story in Hindi)
आचार्य चाणक्य ने धनानंद से बदला लेने और मगध के राजगद्दी पर योग्य शासक को बैठाने का प्रण लिया था। इस क्रम में उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को शिक्षा,नीति कुशलता, युद्ध कौशल में पारंगत कर योग्य बनाया। चाणक्य ने घूम-घूम कर चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में शामिल होने का प्रचार किया। देखते-देखते बड़ी तादाद में लोगों ने सेना में जुड़ना आरंभ किया।
अच्छी खासी सेना का गठन कर आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त के नेतृत्व में मगध पर आक्रमण करते हैं।
मगध की शक्तिशाली सेना के आगे वह अधिक समय तक टिक नहीं पाए। चाणक्य की योजना विफल हो गई। किसी प्रकार चाणक्य तथा चंद्रगुप्त जान बचाकर वहां से निकल भागे और एक कुटिया के पीछे जाकर छुप गए। उस कुटिया के भीतर एक मां खिचड़ी बना रही थी, उसका बच्चा भूखा था मां ने खिचड़ी बनाकर ज्यो ही थाली में परोसा ,बच्चे ने उसमें हाथ डाल दिया।
खिचड़ी अधिक गर्म थी जिसके कारण बच्चे का हाथ जल गया।
मां ने तत्काल कहा – ‘तू भी चाणक्य की तरह बेवकूफ है, सीधा बीच थाली में हाथ डाल दिया। किनारे का भाग ठंडा होता है उसे खाना चाहिए था। ‘ चाणक्य ने इस वाक्य को सुना तो उसके मस्तिष्क में यह बात घूमने लगी – सीधा बीच में हाथ डाल दिया ‘
वह उस माता के पास जाते हैं और पैर छूकर इस शिक्षा के लिए आभार व्यक्त करते हैं।
वह पुनः नई रणनीति बनाते हैं जिसमें मगध के बाहरी कमजोर राज्यों को प्रभावित करने तथा जीतने का कार्य आरंभ करते हैं।
देखते ही देखते वह मगध को भी जीत जाते हैं।
नैतिक शिक्षा –
- कभी भी दुश्मन को कमजोर नहीं मानना चाहिए
- अहंकार सदैव विनाश का कारण बनती है
- शिक्षा कहीं से भी मिले, ग्रहण करना चाहिए
- पूरी रणनीति के साथ कार्य करना चाहिए।
4. दही कांटे का प्रसंग
( Chanakya stories in Hindi with moral values )
चाणक्य की रणनीति और चंद्रगुप्त की कुशलता से सिकंदर परास्त होकर वापस अपने देश लौट चुका था। सिकंदर की मृत्यु के बाद उसका सेनापति सेल्यूकस राज गद्दी पर बैठा भारत को पुनः जीतने के लिए विशाल सेना के साथ निकल पड़ा।भारत पिछली बार से अधिक समृद्ध और शक्तिशाली हो चुका था क्योंकि यहां चंद्रगुप्त मगध के सिंहासन पर आचार्य चाणक्य की छत्रछाया में राज कर रहा था।
चंद्रगुप्त ने व्यास नदी के पा रही यमन की सेना को कुचल डाला।
इतनी भीषण लड़ाई हुई की सेल्यूकस ने स्वयं आत्मसमर्पण का प्रस्ताव पेश किया।
आचार्य चाणक्य ने कहा –
वह सब तो ठीक है किंतु तुम्हें आत्मसमर्पण के साथ-साथ अपनी बेटी कार्नेलिया का विवाह चंद्रगुप्त से कराना होगा। इस शर्त के साथ कि उसका पुत्र उत्तराधिकारी नहीं बनेगा।
सेल्यूकस ,चाणक्य के प्रस्ताव पर राजी हो गया।
चंद्रगुप्त अपने आचार्य की किसी रणनीति पर प्रश्न नहीं करते किंतु इस बार वह चाणक्य से पूछ बैठे कि यह विवाह का प्रस्ताव आखिर क्यों?
चाणक्य चंद्रगुप्त को लेकर जंगल की ओर निकल गए।
वहां रास्ते में कांटा बिछा था वह कांटा दोनों के पैर में चुभ गया।
चंद्रगुप्त ने नीचे देखा तो कांटे की एक जंगली बेल चारों ओर फैली हुई थी।चंद्रगुप्त ने तलवार निकाला और उस बेल को उखाड़ फेंकने के लिए आगे बढ़े। आचार्य ने रोकते हुए कहा इसे हम प्रेम से भी जड़ से समाप्त कर सकते हैं। इसकी जड़ पर गुड़ और दही डाल दिया जाए तो चीटियां इसके जड़ को कुछ ही दिनों में समाप्त कर देगी। इसी प्रकार सेल्यूकस की पुत्री से विवाह का प्रस्ताव बार-बार के युद्ध को अनंत काल के लिए रोक देगा।
वह फिर कभी लौट कर अपनी बेटी के ससुराल युद्ध करने नहीं आएगा।
नैतिक शिक्षा –
- शत्रु को रणनीति से हराया जा सकता है
- शत्रुता को जड़ से समाप्त करने के लिए प्रेम का मजबूत बंधन होना चाहिए
- दूरगामी परिणाम पर विचार करते हुए कार्य करना चाहिए।
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निष्कर्ष ( What we learn )
Today we have read Best Chanakya stories in Hindi with moral values.
आचार्य चाणक्य को हम विष्णुगुप्त तथा कौटिल्य के नाम से भी जानते हैं। यह तक्षशिला के प्रधान अध्यापक तथा प्राचार्य भी रहे हैं। तक्षशिला उस समय की विश्व भर में शिक्षा केंद्र के रूप में विख्यात था। विदेश से विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
चाणक्य सभी प्रकार की नीतियों में प्रांगण थे वह युद्ध नीति,अर्थशास्त्र,समाजशास्त्र,राजनीति,ज्योतिष अनेकों क्षेत्र में सिद्ध थे। वह देश के प्रति श्रद्धा का भाव रखते थे। देश की रक्षा के लिए उन्होंने धनानंद से सहायता मांगी किंतु उसके मद और लोभ ने उसे राष्ट्रहित में कार्य करने से रोक दिया। परिणाम स्वरूप उन्होंने उस गति से धनानंद को हटाया और चंद्रगुप्त मौर्य को स्थापित किया।
उनकी छत्रछाया में निरंतर भारत की सीमाओं की वृद्धि हुई।
एक अखंड भारत का निर्माण कर आचार्य ने अपने बुद्धि बल का परिचय दिया।
आचार्य चाणक्य के बारे में जितना जाने उतना ही कम है।
आशा है उपरोक्त कहानियां आपको चाणक्य के विषय में जानने हेतु मददगार साबित हुई होगी।
किसी भी सुझाव के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें।